Ad

ड्रैगन फ्रूट

महाराष्ट्र में ड्रैगन फ्रूट की खेती ने बदली लोगों की किस्मत, अब गन्ना-अंगूर छोड़कर यही उगा रहे हैं किसान

महाराष्ट्र में ड्रैगन फ्रूट की खेती ने बदली लोगों की किस्मत, अब गन्ना-अंगूर छोड़कर यही उगा रहे हैं किसान

इन दिनों कई राज्यों में मौसम का दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है। ऐसे कई राज्य हैं जहां पर अब बरसात कम होने लगी है, इससे सीधे तौर पर किसान प्रभावित होते हैं। कम बरसात के कारण मिट्टी में नमी की कमी हो जाती हैं जिससे फसलों कि बुवाई कम होती है और किसानों का मुनाफा भी कम हो जाता है। इन समस्याओं को देखते हुए अब  किसान वैकल्पिक खेती की तरफ ध्यान देने लगे हैं, जो किसानों के लिए अनुकूल हो और जिसमें किसानों को अच्छी खासी आमदनी भी हो।

ऐसी ही एक खेती है जिसे हम ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit; पिताया फल; pitaya or pitahaya ) की खेती के नाम से जानते हैं। इस खेती में महाराष्ट्र के सांगली जिले के किसानों की रुचि दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। महाराष्ट्र का सांगली जिला देश में सूखा प्रभावित इलाकों में से एक है। यहां पर बेहद कम मात्र में बरसात होती है जो किसानों के लिए मुसीबत का सबब है। यहां के किसान पानी की कम उपलब्धता के बावजूद परंपरागत गन्ना-अंगूर की खेती कर रहे हैं। अब कुछ दिनों से यहां के किसानों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को अपनाया है। इस खेती में पानी कम जरूरत होती है, इसके साथ ही अन्य फसलों की तरह इसमें देखभाल की भी उतनी जरूरत नहीं होती। सांगली में पिछले कई सालों से कुछ किसान कम संसाधनों के साथ ड्रैगन फ्रूट की खेती करके अच्छा खास लाभ काम रहे हैं।

ये भी पढ़ें: यह ड्रैगन फ्रूट ऐसा, जिसकी दुम पर पैसा
सांगली जिले के किसानों ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में पहली बार में अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा निवेश होता है। लेकिन उस हिसाब से इसमें उत्पादन भी ज्यादा होता है, जिससे लागत बहुत जल्दी वसूल हो जाती हैं। इसके अलावा ड्रैगन फ्रूट के भाव भी अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा होते हैं। पहली बार के बाद इसमें उतने ज्यादा निवेश की जरूरत नहीं होती। सांगली जिले में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले कई किसानों ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में गन्ने की खेती की अपेक्षा मुनाफा ज्यादा होता है। अगर किसान गन्ने की खेती करके 1 लाख रुपये कमा पाते थे तो वहीं अब वो ड्रैगन फ्रूट की खेती करके 8 से 9 लाख रुपये तक कमा लेते हैं। इसके साथ ही पानी की कम जरूरत के साथ ही खेती की लागत में कमी के कारण ड्रैगन फ्रूट की खेती में दिमागी टेंशन भी कम होती है। इसके साथ ही इस फसल में ओलावृष्टि बारिश या सूखा से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। यह फल ज्यादातर विदेशों में निर्यात किया जाता है। वहां पर इस फल की उचित कीमत मिलती है। सांगली जिले के कई किसानों ने बताया की वो पिछले कुछ सालों से अपने उत्पादन का एक बहुत बड़ा हिस्सा दुबई को निर्यात करते हैं। विदेशों के साथ ही भारत में भी ड्रैगन फ्रूट का चलन काफी बढ़ गया है, जिससे भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता, सूरत, जयपुर और गुवाहाटी में यह फल लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है और इस फल की काफी डिमांड रहती है।

स्प्रिंकलर तकनीक से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने पर मिलेगी 80% फीसद छूट

स्प्रिंकलर तकनीक से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने पर मिलेगी 80% फीसद छूट

भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत के 70% फीसद से ज्यादा लोग खेती किसानी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संलग्न हैं। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के किसानों की मदद हेतु केन्द्र और राज्यों की सरकार हर संभव प्रयास करती हैं। 

इसको लेकर सरकार विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाती है। साथ ही, किसानों को अनुदान भी प्रदान किया जाता है। इसी कड़ी में सरकार ड्रैगन फ्रूट की खेती में सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर तकनीक का इस्तेमाल करने वाले कृषकों को 80% फीसद तक का अनुदान दिया जा रहा है।

स्प्रिंकलर तकनीक से ड्रैगन फ्रूट की अच्छी उपज मिलेगी 

भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती बड़ी ही तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है। हालांकि, यह फल मुख्य रूप से थाईलैंड, इजरायल, वियतनाम और श्रीलंका जैसे देशों में काफी प्रसिद्ध है। 

लेकिन, वर्तमान में इसे भारत के लोगों द्वारा भी बेहद पसंद किया जा रहा है। यदि आप ड्रैगन फ्रूट की खेती करते हैं अथवा फिर करने की योजना बना रहे हैं, तो आप ड्रैगन फ्रूट की खेती में सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अवश्य करें। 

ड्रैगन फ्रूट की खेती में इस तकनीक का उपयोग करने से आपके खेतों में फसल की उपज काफी बढ़ेगी। स्प्रिंकलर तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए सरकार की ओर से 80% प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाएगा।

ड्रैगन फ्रूट सेहत के लिए अत्यंत लाभकारी है 

फल हमारे स्वास्थ के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं। ड्रैगन फ्रूट का सेवन करने से आपको विभिन्न प्रकार के स्वास्थ से संबंधित लाभ मिलते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ड्रैगन फ्रूट के अंदर भरपूर मात्रा में Vitamin C पाया जाता है। 

ये भी पढ़े: ऐसे एक दर्जन फलों के बारे में जानिए, जो छत और बालकनी में लगाने पर देंगे पूरा आनंद

इसका सेवन करने से इम्यून सिस्टम भी बेहद मजबूत होता है। इसके अलावा ड्रैगन फ्रूट का सेवन करने से मधुमेह को काबू में रखा जा सकता है। साथ ही, आपको इससे कॉलेस्ट्रोल में भी अत्यंत लाभ मिल सकता है। ड्रैगन फ्रूट एक ऐसा फल है, जिसमें फैट और प्रोटीन की मात्रा बेहद कम पाई जाती है।

ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए कितनी सब्सिडी दी जा रही है 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बिहार सरकार उद्यान निदेशालय ने किसानों के लिए एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना का शुभारंभ किया है। इस योजना के अंतर्गत ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले कृषकों को सरकार की ओर से प्रति इकाई लागत (1.25 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर) का 40% अनुदान दिया जाएगा। 

इस हिसाब से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसानों को अनुदान के तौर पर 40% प्रतिशत यानी 50 हजार रुपये मिलेंगे। 

योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन यहां करें 

यदि आप बिहार राज्य में रहते हैं और इस योजना का लाभ उठाना चाहते हैं, तो बिहार कृषि विभाग, उद्यान निदेशालय की ऑफिसियल वेबसाइट horticulture.bihar.gov.in पर आवेदन कर सकते हैं।

ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

हमारे यूजर श्री संजय शर्मा जी, राकेश कुमार ग्राम कलुआ नगला, ने ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानकारी मांगी थीड्रैगन फ्रूट मूलतः वियतनाम,थाईलैंड,इज़रायल और श्रीलंका में मशहूर है.या आप कह सकते हैं की वहीं से ये दुनियां में फैला है.ड्रैगन फ्रूट का पेड़ कैकटस प्रजाति का होता है। इसे कम उपजाऊ मिट्टी और कम पानी के साथ भी उगाया जा सकता है। इसको बीज के साथ भी उगाया जा सकता है लेकिन ये एक लम्बी और कठिन प्रक्रिया है इसको कटिंग के साथ उगाने की सलाह दी जाती है इसके फ्रूट से शरीर को कई पोषक तत्व मिलते हैं इसको खाने से मधुमेह, शरीर में दर्द और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो की शरीर को कई तरह के रोगों से लड़ने में सहायता करता है। भारत में भी इसकी मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए ड्रैगन फ्रूट की खेती भारत में भी बढ़ने लगी है।

लगाने का समय:

ड्रैगन फ्रूट को साल में दो बार लगाया जा सकता है एक फरवरी और सितम्बर के महीने में इसको लगाते समय ध्यान रखना चाहिए की मौसम ज्यादा गर्म न हो जिससे की पौधे को ज़माने में दिक्कत न हो। जैसा की हमने ऊपर बताया है इसकी कटिंग को लगाना ज्यादा अच्छा होता है और उसके जल्दी से फल आने की गारंटी होती है। इसके फल सितम्बर से दिसंबर तक आते हैं इनको 5 से 6 बार तोडा जाता है।

मिट्टी की सेहत:

इसको जैसा की हमने बताया है इसको किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है दोमट मिटटी सबसे ज्यादा मुफीद होती है लेकिन क्योकि ये कैक्टस प्रजाति का पौधा है तो इसे कम उपजाऊ,पथरीली और कम पानी वाली जगह भी आसानी से उगाया जाता है। इसकी मिटटी में जल जमा नहीं होना चाहिए. ये पौधा कम पानी चाहता है. बेहतर होगा की इसको ऐसी जमीन में लगाया जाना चाहिए जहाँ पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था हो और जहाँ पानी  का ठहराब न हो।

उपयुक्त जलवायु:

इसको बहुत ज्यादा तापमान भी बर्दास्त नहीं होता नहीं होता है तो इससे बचने के लिए इसके लिए छाया की व्यवस्था की जा सकती है. वैसे गर्मी से बचने के लिए इसमें समय समय पर पानी देना होता है. पानी देने के लिए ड्राप सिचांई ज्यादा अच्छी रहती है. एक बार कम तापमान में इसका पौधा जम जाये तो ये ज्यादा तापमान को भी झेल लेता है।

खेत की तैयारी:

इसके लिए खेत को समतल करके अच्छी जुताई करके 2 मीटर के अंतराल पर 2 X2 X2 फुट के गड्ढे बना देने चाहिए तथा इसको 15 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए जिससे की इसकी गर्मी निकल जाये उसके बाद इसमें गोबर की सूखी और बनी हुई खाद बालू , मिटटी और गोबर को बराबर के अनुपात में गड्ढे में भर देना चाहिए और कटिंग लगाने के बाद रोजाना शाम को ड्राप सिंचाई करनी चाहिए. ये पौधे को जमने में और बढ़ने में सहायता करता है।

ड्रैगन फ्रूट्स के प्रकार:

[caption id="attachment_2984" align="aligncenter" width="300"]Dragon fruit ड्रैगन फल[/caption] ड्रैगन फ्रूट्स ३ तरह के होते है. लाल रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल , सफेद रंग के गूदे वाला पीले रंग का फल और सफेद रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल. सभी तीनों तरह के फल भारत में उगाये जा सकते हैं. लेकिन लाल रंग के गूदे वाले लाल फल को भारत में ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन इसकी उपज बाजार की मांग के अनुरूप करनी चाहिए. इसका बजन सामान्यतः 300 ग्राम से 800 ग्राम तक होता है और इसके फल की तुड़ाई एक पेड़ से 3 से 4 बार होती है।

ये भी पढ़ें:
यह ड्रैगन फ्रूट ऐसा, जिसकी दुम पर पैसा

रखरखाब:

  • इसके पेड़ को किसी सहारे की जरूरत होती है क्योकि जब पेड़ बढ़ता है तो ये अपना वजन सह नहीं पता है तो इसके पेड़ के पास कोई सीमेंटेड पिलर या लकड़ी गाड़ देनी चाहिए जो की इसके पेड़ का बजन सह सके।
  • आप ड्रैगन फलों के पौधों को कटिंग और बीज दोनों से उगा सकते हैं। हालांकि, बीज द्वारा ड्रैगन फल की सिफारिश नहीं की जाती है क्योंकि इसमें लंबा समय करीब करीब 5 साल का वक्त लग जाता है।
  • जब आप कटिंग से ड्रैगन फ्रूट उगाते हैं, तो 1 फुट लंबाई का 1 साल पुराना कटिंग लगाने के लिए बहुत उपयुक्त होता है।
  • ड्रैगन फ्रूट कुछ शेड को सहन कर सकता है और गर्म जलवायु परिस्थितियों को प्राथमिकता देता है। इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है.ड्रैगन फ्रूट प्लांट को मध्यम नम मिट्टी की आवश्यकता होती है जो कि ड्राप सिंचाई से पूरी कि जा सकती है.
  • आप फूल और फल आने के समय पानी की मात्रा बढ़ा सकते हैं। ड्रैगन फ्रूट कि खेती में ड्रिप सिंचाई ही सबसे उपयुक्त होती है।
  • ड्रैगन फल आसानी से बर्तन, कंटेनर, छत पर और घर के बगीचे के पिछवाड़े में उगाए जा सकते हैं.यदि आप कंटेनर को सूरज की रोशनी के लिए खिड़की के पास रखते हैं, तो ड्रैगन फलों को घर के अंदर उगाया जा सकता है।
  • ड्रैगन फलों के पौधों को दुनिया के उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय स्थानों में उगाया जा सकता है।
  • किसी भी अन्य फलों के पौधों की तरह, ड्रैगन फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • ड्रैगन फ्रूट के पौधों को 40 ° C के तापमान तक सबसे अच्छा उगाया जा सकता है।

बाजार:

इसकी मांग वहां ज्यादा होती है जहाँ हेल्थ को लेकर लोग जागरूक होते है इसका मतलब है की आप इसको बड़े शहरों में बेच सकते हो जहाँ आपको इसकी अच्छी कीमत मिल जाएगी. इसका कीमत 150 से 250 रुपये किलो के हिसाब से होती है इसको अगर एक्सपोर्ट करना हो तो जैसे ही इसका रंग लाल होना शुरू हो तभी इसको तोड़ लेना चाहिए तथा ध्यान रहे की इसमें कोई निशान या किसी बजन से दबे नहीं, नहीं तो इसके ख़राब होने के चांस बढ़ जाते है।

रोग:

ड्रैगन फ्रूट में कोई रोग नहीं आता है अभी तक ऐसा कुछ रोग इसका मिला नहीं है हाँ लेकिन ध्यान रहे जब इसके फूल और फल आने का समय हो उस समय मौसम साफ और शुष्क होना चाहिए आद्रता वाले मौसम में फल पर दाग आने की संभावना रहती है. रखरखाब में सबसे ज्यादा इसको लगाने के समय पर जरूरत होती है।

खाद:

  • ड्रैगन फ्रूट्स को खाद की जरूरत ज्यादा होती है. ये एक गूदा वाला फल होता है तो इससे अच्छा और बड़ा फल लेने के लिए इसके  फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • पौधे की उपलब्धता और बाजार के बारे में स्थान स्थान के हिसाब से बदल जाते हैं. इसके लिए बेहतर है की आप अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी से बात करें तथा पूरी जानकारी लेने के बाद ही इसकी खेती शुरी करें।
यह ड्रैगन फ्रूट ऐसा, जिसकी दुम पर पैसा

यह ड्रैगन फ्रूट ऐसा, जिसकी दुम पर पैसा

यह ड्रैगन फ्रूट ऐसा, बीस साल तक बरसे पैसा : जानें ड्रैगन फ्रूट की जैविक खेती का राज

हम बात कर रहे हैें ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की। इसे पिताया फल (
pitaya or pitahaya) के नाम से भी जाना जाता है। इसकी जैविक खेती करने वाले भारत के किसान मित्र भरपूर कमाई कर रहे हैं। लगभग बीस सालों तक किसान की कमाई का जरिया बने रहने वाले इस फ्रूट के और लाभ क्या हैं, कहां इसका बाजार है, इन विषयों पर हाजिर है पड़ताल।

ड्रैगन फ्रूट के लाभ

ड्रैगन फ्रूट लगाने से लाभ पक्का होने की वजह कई प्रदेशों के साथ ही विदेशों में इस स्पेशल फ्रूट की भारी डिमांड है। खास बात यह भी है कि, ड्रैगन फ्रूट लगाने के लिए किसानों को सरकारी मदद भी दी जाती है।

ये भी पढ़ें: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा
जिले का उद्यान विभाग ड्रैगन फ्रूट की खेती के इच्छुक किसान को अनुदान प्रदान करता है। अनुदान योजना की शर्तें पूरी करने पर प्रति एकड़ के मान से किसान को ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए अनुदान दिया जाता है।

पैदावार बढ़ाने वाले कारक

ड्रैगन फ्रूट की ऑर्गेनिक खेती से लाभ है। वर्मी कंपोस्ट, जैविक खाद, गोमूत्र और नीम से बने कीटनाशक का इस्तेमाल ड्रैगन फ्रूट की उत्तम पैदावार में सहायक है। इसकी सिंचाई ड्रिप सिस्टम से होती है। खास बात यह है कि, जैसे-जैसे ड्रैगन फ्रूट का पेड़ पुराना होता जाता है, उसकी पैदावार क्षमता बढ़ती जाती है।

आयु 20 साल

ड्रैगन फ्रूट की आयु करीब 20 वर्षों से ज्यादा मानी गई है। इस अवधि के दौरान ड्रैगन फ्रूट का पेड़ न केवल खेत के लिए फायदेमंद साबित होता है बल्कि उसकी सेवा करने वाले किसान की भी तकदीर बदल देता है।

ये भी पढ़ें: बांस की खेती लगे एक बार : मुनाफा कमायें बारम्बार

देश और विदेश में है मांग

ड्रैगन फ्रूट की मांग देश और विदेश में है। उत्तरी राज्यों लखनऊ, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में इसका अच्छा बाजार है। इसके अलावा विदेशों में भी ड्रैगन फ्रूट का निर्यात किया जाता है।

खराब न होने की खासियत

ड्रैगन फ्रूट की खास बात ये है कि यह फल जल्दी खराब नहीं होता। ज्यादा समय तक खराब न होने के इस गुण के कारण ड्रैगन फ्रूट की पैदावार से किसान की कमाई के अवसर कई सालों तक सतत बरकरार रहते हैं।

ये भी पढ़ें: फलों के प्रसंस्करण से चौगुनी आय
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के हरदोई जिले में की जाने वाली इस स्पेशल फ्रूट की फार्मिंग किसानों के बीच चर्चा का विषय है। हरदोई के पहाड़पुर में इस स्पेशल फल की खेती की जा रही है। यहां के किसानों को लखनऊ में एक सेमिनार के दौरान ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) के फल को देखने का अवसर मिला था। इस फल की खेती और उससे मिलने वाले लाभों को जानकर वे इसकी खेती करने लिए आकर्षित हुए थे। ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में सेमिनार से हासिल जानकारी जुटाने के बाद उन्होंने अपने खेत पर ड्रैगन फ्रूट की खेती करना शुरू कर दिया।

जिला उद्यान विभाग की मदद

जिला उद्यान विभाग की सहायता से किसानों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की है। जिसमें सलाहकारी एवं आर्थिक मदद शामिल है।

सीमेंट का पोल

इसकी खेती के लिए सीमेंट के पोल के सहारे 4 पौधे लगाए जाते हैं, क्योंकि समय के साथ इसका पेड़ काफी वजनदार होता जाता है। ड्रैगन फ्रूट पेड़ों से उत्पादन क्रमशः बढ़ते हुए 25 से 30 किलो के आसपास पहुंच जाता है।

ये भी पढ़ें: ऐसे एक दर्जन फलों के बारे में जानिए, जो छत और बालकनी में लगाने पर देंगे पूरा आनंद
उद्यान विभाग ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसानों को आर्थिक मदद प्रदान करता है। जिला उद्यान विभाग से ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए जरूरी जानकारी प्रदान की जाती है। जैविक खेती की मदद से इसकी सफल किसानी का खास मंत्र बताया जाता है। ड्रैगन फ्रूट पोषक तत्वों से भी भरपूर है। इस फल में फाइबर की प्रचुर मात्रा तो उपलब्ध है ही, साथ ही इसका व्यापक बाजार भी इसकी खेती के लिए किसानों को प्रेरित कर रहा है।
इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

आज हम आपको गुरसिमरन सिंह नामक एक किसान की सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं। बतादें, कि किसान गुरसिमरन ने अपने चार एकड़ के खेत में 20 से अधिक फलों का उत्पादन कर लोगों के समक्ष एक नजीर पेश की है। आज उनके फल विदेशों तक बेचे जा रहे हैं। पंजाब राज्य के मालेरकोटला जनपद के हटोआ गांव के युवा बागवान किसान गुरसिमरन सिंह अपनी समृद्ध सोच की वजह से जनपद के अन्य कृषकों के लिए भी प्रेरणा के स्रोत बन चुके हैं। यह युवा किसान गुरसिमरन सिंह अपनी दूरदर्शी सोच के चलते पंजाब के महान गुरुओं-पीरों की पवित्र व पावन भूमि का विस्तार कर रहे हैं। वह प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण के संरक्षण हेतु अथक व निरंतर कोशिशें कर रहे हैं। साथ ही, समस्त किसानों एवं आम लोगों को प्रकृति की नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के तौर पर प्राकृतिक संसाधनों को बचाने हेतु संयुक्त कोशिशें भी कर रहे हैं।

किसान गुरसिमरन ने टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा किया हुआ है

बतादें, कि किसान गुरसिमरन सिंह ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा करने के पश्चात अपनी चार एकड़ की भूमि पर जैविक खेती के साथ-साथ विदेशी
फलों की खेती शुरु की थी। गुरसिमरन अपनी निजी नौकरी के साथ-साथ एक ही जगह पर एक ही मिट्टी से 20 प्रकार के विदेशी फल पैदा करने के लिए विभिन्न प्रकार के फलों के पेड़ लगाए थे। इससे उनको काफी ज्यादा आमदनी होने लगी थी। किसान गुरसिमरन सिंह के अनुसार, यदि इंसान के मन में कुछ हटकर करने की चाहत हो तो सब कुछ संभव होता है।

विदेशों तक के किसान संगठनों ने उनके अद्भुत कार्य का दौरा किया है

किसान गुरसिमरन की सफलता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, कि पीएयू लुधियाना से सेवानिवृत्त डाॅ. मालविंदर सिंह मल्ली के नेतृत्व में ग्लोबल फोकस प्रोग्राम के अंतर्गत आठ देशों (यूएसए, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड आदि) के बोरलॉग फार्मर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने किसान गुरसिमरन सिंह के अनूठे कार्यों का दौरा किया। यह भी पढ़ें: किसान इस विदेशी फल की खेती करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान गुरसिमरन 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं

वह पारंपरिक फल चक्र से बाहर निकलकर जैतून, चीनी फल लोगान, नींबू, अमरूद, काले और नीले आम, जामुन, अमेरिकी एवोकैडो और अंजीर के साथ-साथ एल्फांजो, ब्लैक स्टोन, चोसा, रामकेला और बारामासी जैसे 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं। किसान गुरसिमरन ने पंजाब में प्रथम बार सौ फल के पौधे लगाकर एक नई पहल शुरु की है। इसके अतिरिक्त युवा किसान ने जैविक मूंगफली, माह, चना, हल्दी, गन्ना, ज्वार,बासमती, रागी, सौंफ, बाजरा, देसी और पीली सरसों आदि की खेती कर स्वयं और अपने परिवार को पारंपरिक फसलों के चक्र से बाहर निकाला है। गुरसिमरन की इस नई सोच की वजह से जिले के किसानों ने भी अपने आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाया है। साथ ही, लोगों को पारंपरिक को छोड़ नई कार्यविधि से खेती करने पर आमंत्रित किया है।
बिहार सरकार की किसानों को सौगात, अब किसान इन चीजों की खेती कर हो जाएंगे मालामाल

बिहार सरकार की किसानों को सौगात, अब किसान इन चीजों की खेती कर हो जाएंगे मालामाल

बिहार सरकार किसानों को एक बड़ी सौगात दे रही है जिसकी खूब चर्चा हो रही है। दरअसल बिहार सरकार का उद्यान विभाग मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना एवं राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत फल और फूलों के बगीचे लगाने के लिए किसानों को 40 से 75 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान कर रहा है, जिससे बिहार के किसानों के चेहरे पर खुशी झलक रही है। मौजूदा दौर में देश के कई राज्यों में किसानों के द्वारा मुख्य फसल की जगह पर तरह तरह के फल और फूलों की खेती की जा रही है।  खेती करने की मुख्य वजह फल और फूलों की घरेलू बाजार के साथ-साथ विश्व की बाजारों मे बढ़ती हुई मांग है।  किसानों को उनके द्वारा उगाए गए फूलों का उचित रेट भी मिल रहा है।  उचित मुनाफा होने के कारण किसान भी जोर–शोर से फल और फूलों की खेती कर रहे हैं।


ये भी पढ़ें: फूलों की खेती से कमा सकते हैं लाखों में
भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। यहां के अधिकतर लोग कृषि के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं, जो अपना भरण-पोषण अपने द्वारा उपजाए गए फसलों को बाजारों में बेचकर करते हैं। मुख्य फसलों की जगह पर फल फूलों की खेती करना आज के इस दौर में कृषि के क्षेत्र में एक प्रमुख विकल्प बनकर उभर रहा है। राज्य सरकार और भारत सरकार भी किसानों की आय में बढ़ोतरी और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तरह-तरह की स्कीम और नए-नए तकनीक के साथ खेती करने का प्रशिक्षण दे रही है। इसी कड़ी में बिहार सरकार ने भी किसानों को एक बहुत बड़ी सौगात दी है। फलों एवं फूलों की खेती करने के लिए बिहार के किसानों को उद्यान विभाग राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं मुख्यमंत्री मिशन योजनाओं 40 से 75 प्रतिशत का अनुदान दे रही है। सब्सिडी को प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है। सरकार सरकार के द्वारा फल और फूलों की खेती करने पर इस तरह से अनुदान देना एक सराहनीय कदम माना जा रहा है।

अभी सिर्फ इन जिले के किसानों को ही मिलेगा लाभ

एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट गवर्नमेंट ऑफ़ बिहार के ट्विटर आईडी पर पूरी जानकारी स्पष्ट रूप से दी गई हुई है जिसमें ऑनलाइन आवेदन करने के बारे में भी बताया गया है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत आच्छादित जिलों की सूची भी दी गई है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले पटना, नालंदा, रोहताश, गया, औरंगाबाद, मुजफ्फर पुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, मूंगेर, बेगूसराय, जमुई, खगड़िया, बांका और भागलपुर है। वहीं मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले भोजपुर, बक्सर, कैमूर, जहानाबाद, अरवल, नावादा, सारण, सिवान, गोपालगंज, सीतामढी, शिवहर, सुपौल, मधेपुरा, लखीसराय और शेखपुरा है।

जानिए किस फल पर मिल रही है कितनी सब्सिडी

उद्यान विभाग, राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत चयनित जिलों के किसानों को ड्रैगन फ्रूट और स्ट्रॉबेरी उपजाने के लिए 40 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। वहीं अनानास, फूल की खेती जैसे गेंदा और अन्य फूल, मसाले की खेती और सुगंधित पौधे की खेती (मेंथा) पर 50 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। बिहार सकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए भी सब्सिडी का प्रावधान रखा है। केन्द्र सरकार द्वारा नेशनल बीकीपिंग एंड हनी मिशन का भी गठन किया जा रहा है।


ये भी पढ़ें:
मधुमक्खी पालन को 500 करोड़ देगी सरकार
सबसे ज्यादा यानी 75 फ़ीसदी की सब्सिडी पपीते की खेती पर दी जा रही है, जिससे कम लागत में किसान आसानी से उत्पादन कर सकता है। लोगों में इस फल की मांग भी काफी ज्यादा रहती है। अगर आप ड्रैगन फ्रूट्स, स्ट्रॉबेरी, पपीता, गेंदे की फूल की खेती और सुगंधित पौधे (मेंथा) की खेती करना चाहते है और आप सरकार द्वारा चयनित जिले के निवासी हैं, तो आप http://horticulture.bihar.gov.in/ पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करके योजनाओं का लाभ पा सकते हैं। अगर आप इन योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप अपने जिले के सहायक निदेशक उद्यान से संपर्क कर सकते हैं और किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर जाकर बीज प्राप्त करने कि जानकारी और नए तकनीक के साथ खेती को और बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।


ये भी पढ़ें:
गेंदा के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
भारत के अनेक राज्यों में फल फूल की खेती लोग तेजी से कर रहे हैं। मुख्य तौर पर लोग अब मुनाफा अर्जित करने के लिए ड्रैगन फ्रूट जैसे फलों की उपज करने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। यह एक वानस्पतिक फल वाला पौधा है जो आम तौर पर मानसून के दौरान या उसके बाद में फलता है। इसे आमतौर पर रोपने के 18-24 महीने बाद यह फल देना शुरू कर देता है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 1000 ग्राम तक होता है। एक पेड़ में आमतौर पर लगभग 15 से 25 किलो फल लगते हैं, ये फल बाजार में 300 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकते हैं, लेकिन सामान्य कृषि दर लगभग रु 125 से 200 प्रति किलो। अगर आप इसकी उपज करते हैं तो आप प्रति एकड़ 5-6 टन की औसत उपज पा सकते हैं।


ये भी पढ़ें: यह ड्रैगन फ्रूट ऐसा, जिसकी दुम पर पैसा
भले ही बिहार में बड़े उद्योग लग नहीं पा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कृषि से जुड़े क्षेत्र में लगातार बेहतर कार्य हो रहे है। बिहार सरकार दूसरी हरित क्रांति लाने के प्रयास में जुट गयी है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी बिहार के बारे कहा था की बिहार में दूसरी हरित क्रांति की पूरी संभावना है और जिस तरह से बिहार कृषि के क्षेत्र बढ़ रहा है, इससे अर्थव्यवस्था में काफी हद तक सुधार होगी। बिहार को कृषि में आगे बढ़ने और औद्योगीकरण की ओर बढ़ने के लिए एक बड़ी छलांग की जरूरत है।


ये भी पढ़ें: हरित क्रांति के बाद भारत बना दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक
वर्तमान में, हमारे किसान देखते हैं कि पिछले सीजन में किसी विशेष उपज के लिए उन्हें क्या कीमत मिली थी। उदाहरण के लिए, यदि सरसों से उन्हें अच्छी कीमत मिलती है, तो हर कोई उसी की खेती करना पसंद करता है।  लेकिन जिस तरह से सरकार फल फूलों को उपजाने के लिए सब्सिडी दे रही है उससे किसानों का आत्मबल मजबूत हो रहा है और साथ ही बिहार में किसानों कि हालात में भी सुधार हो रहा हैं।
गुलाबी फलों का उत्पादन कर किसान सेहत के साथ साथ कमाऐं मुनाफा

गुलाबी फलों का उत्पादन कर किसान सेहत के साथ साथ कमाऐं मुनाफा

गुलाबी रंग के फल हमारे शरीर के लिए काफी लाभकारी होते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही फलों के विषय में बताने जा रहे हैं। गुलाबी खाद्य पदार्थ, एंथोसायनिन और बीटालेंस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। यह हमारे शरीर में एंटीऑक्सिडेंट का कार्य करते हैं, जो प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करते हैं। हम अपनी थाली में कई तरह के फलों और सब्जियों का उपयोग करते हैं। परंतु, गुलाबी रंग के खाद्य पदार्थ हमारे शरीर के लिए बेहद ही लाभकारी होता है। ऐसे में आज हम आपको गुलाबी रंग के कुछ फलों के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं, जो हमारे शरीर की उत्तम सेहत के लिए आवश्यक होता है। प्राकृतिक रूप से गुलाबी खाद्य पदार्थों में एंथोसायनिन और बीटालेन, फ्लेवोनोइड और एंटीऑक्सिडेंट युक्त यौगिक शम्मिलित होते हैं, जो शरीर को कई प्रकार की बीमारियों से सुरक्षा करता है।

गुलाबी फलों का उत्पादन

चुकंदर

चुकंदर हमारे शरीर का रक्त परिसंचरण को बढ़ाने, रक्तचाप को सुदृढ़ रखने में सहायता करता है। कच्चे चुकंदर के रस का सेवन, सलाद एवं सब्जी के रूप में उपयोग करना चाहिए। यह हमारे शरीर के लिए जरूरी विटामिन, खनिज एवं फोलेट की मात्रा की पूर्ति करता है। इसके अलावा चुकंदर में एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं जो कैंसर-रोधी गुणों के लिए जाने जाते हैं।

ये भी पढ़ें:
चुकंदर की खेती से जुड़ी जानकारी (How To Cultivate Beetroot Farming)

अनार

अनार का सेवन हमारी रक्त शर्करा और रक्तचाप को नियंत्रित करता है। यह हमारी पाचन संबंधी समस्याओं के लिए भी लाभदायक होता है। इसके अलावा इन फलों में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण विघमान होते हैं, जो हमें रोगों से बचाता है। अनार का जूस मूत्र संक्रमण के लिए एक निवारक का कार्य करता है।

ड्रैगन फ्रूट

यह अनोखा आकर्षक उष्णकटिबंधीय फल है, इसका सेवन हमारी मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों से रक्षा करता है। आहार में ड्रैगन फ्रूट को शम्मिलित करने से यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को अच्छा बनाता है। साथ ही, हृदय से जुड़ी बीमारियों के लिए भी अच्छा माना जाता है।

बैंगनी पत्तागोभी

यह रंगीन पत्तेदार हरी पत्तागोभी एंटीऑक्सीडेंट का एक शक्तिशाली भंडार होती है, जो हमारे शरीर की सेलुलर क्षति के विरुद्ध एक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करती है। इसमें विघमान विटामिन सी एवं कैरोटीन की भरपूर मात्रा के साथ-साथ पर्याप्त फाइबर भी मौजूद होता है, जो हमारे शरीर की प्रतिरक्षा करता है।

ये भी पढ़ें:
रंगीन फूलगोभी उगा कर किसान हो रहें हैं मालामाल, जाने कैसे कर सकते हैं इसकी खेती

लीची

लीची तांबा, लोहा, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस जैसे खनिज तत्वों से भरपूर होती है। यह हमारे शरीर की हड्डियों को शक्ति प्रदान करता है। यह मोतियाबिंद, मधुमेह, तनाव एवं हृदय रोगों से भी शरीर को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
15 बीघे में लाल चंदन की खेती कर कैसे हुआ किसान करोड़पति

15 बीघे में लाल चंदन की खेती कर कैसे हुआ किसान करोड़पति

सभी तरह के केमिकल फ़र्टिलाइज़र दिनोंदिन महंगे होते जा रहे हैं, जिसका सीधा असर खेती पर पड़ रहा है। आजकल किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा बन कर रह गई है। ऐसे में किसानों का जागरूक होना बहुत ज्यादा जरूरी है। जागरूक किसान परंपरागत फसल जैसे गन्ना, आलू, गेहूं और धान की खेती छोड़ मुनाफे की खेती की ओर रुख कर करे हैं। बिजनौर के किसान भी ऐसे ही अलग तरह की खेती की ओर रुख कर रहे हैं और वह है लाल चंदन की खेती। इसके अलावा बहुत से किसान ड्रैगनफ्रूट, कीवी और आवाकाडो जैसे फलों की बागवानी कर रहे हैं। इसके साथ ही अनेक किसान मेडिसिनल प्लांट्स जैसे अश्वगंधा, एलोवेरा, शतावर और तुलसी की भी खेती कर रहे हैं। 

ये भी पढ़े: बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों? 

आज हम आपको बिजनौर के बलीपुर गांव के किसान चंद्रपाल सिंह के बारे में बताने वाले हैं, जो पिछले लगभग 10 वर्षों से सफेद और लाल चंदन की खेती कर रहे हैं। चंद्रपाल सिंह से हुई बातचीत में पता चला कि चंदन का पौधा 150 रुपए में मिल जाता है और उसके बाद जब 12 साल बाद ही यह तैयार होता है तो इसकी कीमत लगभग डेढ़ लाख रुपए हो जाती है। दुनिया भर में चंदन की डिमांड के बारे में हम सब जानते हैं, चंदन की लकड़ी उस का तेल और बुरादा सभी चीजें लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाती हैं और बाजार में बहुत ज्यादा मांग में रहती हैं। चंद्रपाल सिंह ने बताया कि चंदन की खेती की ढंग से देखभाल करते हुए आप करोड़पति बन सकते हैं। बस आपको जरा सब्र रखने की जरूरत है, उन्होंने कहा कि बिजनोर के अनेकों किसानों ने शुरुआत में कर्नाटक और तमिलनाडु से चंदन की पौध लाकर अपने खेतों में लगाई थी।

 

कुछ सालों में करोड़ों हो जाएगी कीमत

इसके अलावा चांदपुर में रहने वाले किसान शिवचरण सिंह ने 15 बीघा जमीन में लाल चंदन के पौधे लगाए थे, जो अब लगभग 20 फीट ऊंचे पेड़ बन गए हैं। उन्होंने कहा कि उनके खेत में लगभग 1500 पेड़ लाल चंदन के हैं, जिनकी कीमत लगभग दो करोड़ रुपए लग चुकी है। व्यापारी बार-बार आकर इन के पेड़ों को करोड़ों में खरीदना चाहते हैं, लेकिन वह अभी इसकी कीमत को और बढ़ाना चाहते हैं। लिहाजा उनका इरादा 3 साल के बाद पेड़ों को बेचने का है। शिवचरण सिंह को उम्मीद है, कि उनके पेड़ों की कीमत 3 साल बाद 3 करोड़ रुपए होगी। चंदन के पेड़ों की बागवानी करने के साथ-साथ चंद्रपाल सिंह दूसरे किसानों को तमिलनाडु और कर्नाटक से चंदन की पौध भी लाकर बेचते हैं और गाइड भी करते हैं।

 

बड़े लेवल पर कर रहे हैं किसान चंदन की खेती

बिजनौर के डीएम उमेश मिश्रा ने बताया कि बिजनौर में अब तक 200 से ज्यादा किसानों ने चंदन की खेती बड़े लेवल पर करनी शुरू कर दी है। इसके साथ ही कुछ किसान ड्रैगन फ्रूट की बागवानी कर रहे हैं। बिजनौर के बलिया नगली गांव के जयपाल सिंह ने 1 एकड़ जमीन में पर्पल ड्रैगन लगा रखा है, जिससे उन्हें हर साल 5 लाख रुपए की आमदनी हो रही है। थाईलैंड और चाइना का यह फल सौ से डेढ़ सौ रुपए में मिलता है।

 

क्यों बिजनौर का वातावरण है अलग अलग तरह की खेती के लिए एकदम सही

बिजनौर में किसान बाकी खेती के साथ साथ ड्रैगन फ्रूट की खेती भी कर रहे हैं। इस फल को उगाने के लिए खर्चा थोड़ा ज्यादा आता है, लेकिन बाजार में बेचते समय इसकी कीमत भी काफी ज्यादा लगाई जाती है। ऐसा ही कीवी और आवाकार्डो के साथ भी है, आमतौर पर यह सब फल ठंडे इलाकों में पैदा होते हैं। लेकिन उत्तराखंड की पहाड़ी से लगे होने की वजह से बिजनौर का वातावरण इन्हें अच्छा खासा सूट कर रहा है।

 

यह खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है

बिजनौर में किसान बहुत लंबे समय से गन्ने की खेती करते आ रहे हैं और इसके अलावा यहां पर गेहूं या आलू आदि भी उगाया जाता था। लेकिन समय और प्राकृतिक मार के कारण इस तरह की खेती में किसानों को ज्यादा लाभ नहीं मिल रहा था। इसलिए उन्होंने अपना रुख बागवानी और औषधीय पौधे की तरफ किया है। बिजनौर के कई किसान एलोवेरा, अश्वगंधा, सतावर और तुलसी आदि औषधीय पौधे की भी खेती कर रहे हैं, जिनका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाइयों में होने की वजह से बाजार में अच्छी कीमतों पर उपज बिक जाती है।